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हजारीबाग : रक्षाबन्धन एक त्योहार ही नहीं, एकसूत्रता का सांस्कृतिक प्रतीक भी है - बाबा पीयूष पाण्डेय

रक्षाबन्धन पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता या एकसूत्रता का सांस्कृतिक उपाय रहा है। संवत 2080 श्रावण शुक्ल...
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रक्षाबन्धन एक त्योहार ही नहीं,एकसूत्रता का सांस्कृतिक प्रतीक भी है-बाबा पीयूष पाण्डेय
फोटो : बाबा पीयूष पाण्डेय

रक्षाबन्धन एक त्योहार ही नहीं,एकसूत्रता का सांस्कृतिक प्रतीक भी है - बाबा पीयूष पाण्डेय

ज़ारीबाग : रक्षाबन्धन पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता या एकसूत्रता का सांस्कृतिक उपाय रहा है। संवत 2080 श्रावण शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी,30अगस्त दिन-बुधवार को प्रातः 10:13 तक है।इसके बाद पूर्णिमा तिथि लग रही है पर इसी समय से भद्रा प्रारम्भ होकर रात्रि 8:57 समाप्ति है।भद्रा युक्त पूर्णिमा में रक्षाबंधन निषेध किया गया है। पुनः 31अगस्त दिन-ब्रहस्पतिवार उदयकालीन पूर्णिमा प्रातः 7:46 तक ही प्राप्त है।अतः इसी दिन रक्षाबंधन पर्व मनाया जाना उचित माना गया है।आगे आचार्य बाबा पीयूष पाण्डेय बताते हैं कि विवाह के बाद बहन पराये घर में चली जाती है।इस बहाने प्रतिवर्ष अपने सगे ही नहीं अपितु दूरदराज के रिश्तों के भाइयों तक को उनके घर जाकर राखी बाँधती है और इस प्रकार अपने रिश्तों का नवीनीकरण करती रहती है।दो परिवारों का और कुलों का पारस्परिक योग होता है।समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भी एकसूत्रता के रूप में इस पर्व का उपयोग किया जाता है।इस प्रकार जो कड़ी टूट गयी है उसे फिर से जागृत किया जा सकता है।सनातन धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं,जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है।भविष्य पुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों बांधते हुए स्वस्तिवाचन किया।यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है।"येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥"इस श्लोक का भावार्थ है-"जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था,उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे(राखी)!तुम अडिग रहना तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।"आचार्य बाबा पीयूष पाण्डेय आगे कहते हैं कि स्कंद पुराण,पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण में मिलती कथा के अनुसार असुरराज दानवीर राजा बली ने देवताओं से युद्ध करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था और ऐसे में उसका अहंकार चरम पर था।इसी अहंकार को चूर-चूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अदिति के गर्भ से वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में राजा बली के द्वार भिक्षा मांगने पहुंच गए।

चूंकि राज बली महान दानवीर थे तो उन्होंने वचन दे दिया कि आप जो भी मांगोगे मैं वह दूंगा। भगवान ने बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि की मांग ली।बली ने तत्काल हाँ कर दी,क्योंकि तीन पग ही भूमि तो देनी थी।लेकिन तब भगवान वामन ने अपना विशालरूप प्रकट किया और दो पग में सारा आकाश,पाताल और धरती नाप लिया।फिर पूछा कि राजन अब बताइये कि तीसरा पग कहां रखूं?तब विष्णुभक्त राजा बली ने कहा,भगवान आप मेरे सिर पर रख लीजिए और फिर भगवान ने राजा बली को रसातल का राजा बनाकर अजर-अमर होने का वरदान दे दिया।लेकिन बली ने इस वरदान के साथ ही अपनी भक्ति के बल पर भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन भी ले लिया।भगवान को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी के पास जाना था लेकिन भगवान ये वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बली की सेवा में रहने लगे।उधर,इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो गई।ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया।तब लक्ष्मीजी ने राजा बली को राखी बांध अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं।उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं।आगे के क्रम में आचार्य बाबा पीयूष पाण्डेय ने बताया कि रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है।राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे,रेशमी धागे तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है।रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है,रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है।रक्षाबंधन के दिन बहने भगवान से अपने भाईयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती है।राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों,गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों को भी बाँधी जाती है।


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