आज के लाल किले से गूँजी कल के भारत की गूंज

संपादकीय- 15 अगस्त 2025 की वह सुबह दिल्ली में एक अलग ही चमक लेकर आई थी। आसमान हल्का नीला था, बादल बस उतने थे कि सूरज को थोड़ी देर ढककर वातावरण...
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आज के लाल किले से गूँजी कल के भारत की गूंज संपादकीय-

15 अगस्त 2025 की वह सुबह दिल्ली में एक अलग ही चमक लेकर आई थी। आसमान हल्का नीला था, बादल बस उतने थे कि सूरज को थोड़ी देर ढककर वातावरण को शीतल बनाए रखें, मानो प्रकृति खुद देश के इस गौरवशाली पर्व के लिए मंच तैयार कर रही हो। लाल किला, जिसकी प्राचीर ने सदियों से सत्ता परिवर्तन, संघर्ष और स्वतंत्रता के अनगिनत अध्याय देखे हैं, इस दिन एक बार फिर उस क्षण का साक्षी बनने वाला था, जब देश का नेतृत्व अपनी जनता और दुनिया के सामने अपने विचार, संकल्प और नीतियों का उद्घोष करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब तिरंगे के नीचे खड़े होकर अपने भाषण की शुरुआत कर रहे थे, तो भीड़ की आंखों में केवल उत्सुकता नहीं थी वहां एक उम्मीद, एक दृढ़ता और एक नयी ऊर्जा की प्रतीक्षा थी। लेकिन इस बार के भाषण में एक ऐसा वाक्य गूंजा जिसने देश के राजनीतिक, सामरिक और कूटनीतिक इतिहास में एक नई रेखा खींच दी।

आज के लाल किले से गूँजी कल के भारत की गूंज
हंसराज चौरसिया

हम परमाणु धमकियों को बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह केवल एक चेतावनी नहीं थी, यह उस लंबे दौर की समाप्ति थी जिसमें भारत ने धैर्य और संयम के साथ कई आक्रमणों, धमकियों और सीमा पार की घटनाओं का सामना किया था। वर्षों से पाकिस्तान की ओर से परमाणु हथियारों की आड़ में आतंकवाद और हिंसा का खेल चलता रहा, और हर बार कूटनीतिक मंचों पर संयम की भाषा बोलने वाले भारत ने आज यह साफ कर दिया कि संयम का अर्थ कमजोरी नहीं है। इस घोषणा के पीछे केवल शब्दों की ताकत नहीं थी, बल्कि एक ठोस राजनीतिक संदेश था भारत अब उस दौर में है जहां वह न केवल रक्षा में सक्षम है बल्कि जवाबी कदम उठाने में भी पूरी तरह तैयार है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की सेना समय और स्थान तय करेगी, यह वाक्य विरोधियों के लिए स्पष्ट संदेश था कि अब कोई भी कार्रवाई केवल बचाव तक सीमित नहीं रहेगी। यह दृष्टिकोण केवल सैन्य रणनीति का हिस्सा नहीं बल्कि आत्मसम्मान और राष्ट्रीय सुरक्षा के नए मापदंड का परिचायक था। लाल किले से उठी यह आवाज़ केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रही। प्रधानमंत्री ने सिंधु जल संधि का जिक्र करते हुए कहा खून और पानी साथ नहीं बहेंगे। यह वाक्य वर्षों से चली आ रही जल नीति की समीक्षा का संकेत था। पानी, जो जीवन का आधार है, अब राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक नीति का भी केंद्र बन चुका है। पाकिस्तान के हिस्से में जाने वाले जल के प्रवाह को लेकर भारत की नीति में यह बदलाव केवल प्रतिशोध का नहीं बल्कि संसाधनों के संरक्षण और उचित उपयोग का भी प्रतीक है। यह कदम, अगर पूरी तरह लागू हुआ, तो न केवल सीमापार के दबाव को कम करेगा बल्कि भारत के किसानों और जल संकट से जूझ रहे इलाकों को राहत भी देगा।लेकिन प्रधानमंत्री का भाषण केवल आक्रामक चेतावनियों और सामरिक योजनाओं तक सीमित नहीं रहा। उसमें विकास और आत्मनिर्भरता की परिकल्पना भी समान रूप से मजबूत थी। मिशन सुदर्शन चक्र की घोषणा इसका स्पष्ट उदाहरण थी। यह मिशन, जो 2035 तक देश के सभी संवेदनशील और अहम ठिकानों को एक आधुनिक, स्वदेशी तकनीक आधारित सुरक्षा कवच से ढक देगा, भारत की सुरक्षा नीति में तकनीकी क्रांति का संकेत है। इस मिशन में सैटेलाइट निगरानी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित खतरे की पहचान और उन्नत रडार प्रणाली जैसे तत्व शामिल होंगे। इसका मतलब यह है कि अस्पतालों से लेकर रेलवे स्टेशनों, धार्मिक स्थलों से लेकर सरकारी इमारतों तक, सभी स्थान एक अदृश्य लेकिन अभेद्य ढाल के नीचे होंगे। प्रधानमंत्री के भाषण में डबल दिवाली की बात ने आर्थिक मोर्चे पर भी आशा की किरण जलाई। जीएसटी सुधार, जो दिवाली तक लागू होने का वादा किया गया, छोटे व्यापारियों, उद्योगों और आम उपभोक्ताओं के लिए राहत लेकर आएगा। इस तरह का आर्थिक संदेश यह बताता है कि सुरक्षा और विकास को समान महत्व दिया जा रहा है क्योंकि बिना आर्थिक स्थिरता के कोई भी देश लंबे समय तक सामरिक मजबूती नहीं बनाए रख सकता। तकनीकी आत्मनिर्भरता पर भी प्रधानमंत्री ने जोर दिया। स्वदेशी सेमीकंडक्टर चिप्स का उत्पादन, रक्षा उपकरणों में मेक इन इंडिया को प्राथमिकता, और अंतरिक्ष अनुसंधान में भारत की नई उड़ानें। ये सभी घोषणाएं इस ओर इशारा करती हैं कि भारत आने वाले समय में वैश्विक तकनीकी परिदृश्य में केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि प्रदाता की भूमिका निभाएगा। यह बदलाव केवल आत्मनिर्भरता की नीति नहीं बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन में अपनी जगह सुनिश्चित करने की रणनीति भी है। लेकिन इस भाषण का सबसे बड़ा पहलू यह था कि यह केवल नीतियों और योजनाओं की सूची नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय मनोबल को आकार देने वाला वक्तव्य था। जनता के मन में यह भावना जगाना कि देश न केवल सुरक्षित है, बल्कि आत्मविश्वासी और निर्णायक भी यह किसी भी नेतृत्व के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि होती है। जब प्रधानमंत्री ने लाल किले से उन सैनिकों का जिक्र किया जिन्होंने हाल के ऑपरेशन सिंदूर में अपनी वीरता से आतंकियों के मंसूबे नाकाम किए, तो भीड़ में मौजूद हर व्यक्ति का सिर गर्व से ऊंचा हो गया। इस भाषण को सुनते हुए यह स्पष्ट महसूस होता था कि भारत अब केवल प्रतिक्रियाशील राष्ट्र नहीं है, बल्कि सक्रिय, निर्णायक और रणनीतिक सोच वाला राष्ट्र है। दुनिया के लिए यह संदेश था कि भारत के धैर्य की सीमा है, और उस सीमा के पार जाने वालों के लिए जवाब पहले से कहीं अधिक तीव्र और सटीक होगा। आज की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में, जहां शक्ति संतुलन लगातार बदल रहा है, भारत का यह स्वरूप न केवल अपने नागरिकों के लिए आश्वस्तकारी है बल्कि वैश्विक मंच पर भी एक मजबूत स्थिति की गारंटी देता है। अमेरिका, रूस, चीन और यूरोप के देश इस भाषण को केवल एक राष्ट्रीय अवसर पर दिया गया वक्तव्य नहीं मानेंगे, बल्कि इसे एक नीति दिशा के रूप में देखेंगे। अंततः, 15 अगस्त 2025 केवल एक और स्वतंत्रता दिवस नहीं था। यह एक नए आत्मविश्वास, नई नीति और नए युग की घोषणा थी। लाल किले से लहराता तिरंगा उस दिन केवल हवा में नहीं, बल्कि हर भारतीय के दिल में भी लहरा रहा था। और जब प्रधानमंत्री ने कहा कि हम परमाणु धमकियों को बर्दाश्त नहीं करेंगे, तो यह सिर्फ भारत के दुश्मनों के लिए नहीं था यह हर भारतीय के लिए एक वादा था कि उनका देश अब केवल सुरक्षित नहीं, बल्कि अभेद्य है।

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