आईसेक्ट विश्वविद्यालय, हजारीबाग द्वारा आयोजित प्रथम दीक्षांत समारोह में माननीय राज्यपाल श्री रमेश बैस हुए शामिल
स्थानीय परिसदन में महामहीम को दिया गया गार्ड ऑफ ऑनर
पद्मश्री से सम्मानित श्री मुकुंद नायक को विश्वविद्यालय के द्वारा दर्शनशास्त्र में मानद उपाधि देकर किया सम्मानित
हजारीबाग : आइसेक्ट विश्वविद्यालय हजारीबाग के तरवा खरबा स्थित मुख्य कैंपस में सोमवार को आयोजित विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह में स्नातक एवं स्नातकोत्तर के 148 विद्यार्थियों को मुख्य अतिथि महामहिम राज्यपाल श्री रमेश बैस के हाथों उपाधि प्रदान की गई, जिसमें 56 मेधावीयों को गोल्ड मेडल भी प्रदान किया गया।
इस अवसर पर महामहिम ने सर्वप्रथम, आज उपाधि ग्रहण करने वाले सभी विद्यार्थियों को हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि पदक हासिल करने वाले विद्यार्थी विशेष रूप से प्रशंसा के पात्र हैं। यह उनकी लगन और कड़ी मेहनत का परिणाम है। इस अवसर पर मैं शिक्षकों एवं अभिभावकों के साथ सम्पूर्ण विश्वविद्यालय परिवार को बधाई देता हूँ।
किसी भी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में जब मैं जाता हूँ तो वहाँ जाकर एक अभिभावक के रूप में विद्यार्थियों को प्रेरित करने की कोशिश करता हूँ और मैं चाहता हूँ कि राज्य का हर विद्यार्थी बेहतर करे और राज्य का मान बढ़ाये।
मैं जानता हूँ, राज्य के विद्यार्थी विभिन्न क्षेत्रों में दक्ष हैं, प्रतिभाशाली हैं और वे अपनी प्रतिभा से हर क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन करने की क्षमता रखते हैं, जरूरत है तो उन्हें उचित दिशा प्रदान करने की एवं शिक्षकों के बेहतर मार्गदर्शन की।
प्रिय विद्यार्थियों, इस दीक्षांत समारोह का आप सब बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे होंगे। मुझे उम्मीद है कि आप यहाँ अर्जित ज्ञान एवं व्यक्तिगत अनुभव से जीवन में आनेवाली विभिन्न चुनौतियों का कुशलतापूर्वक सामना करने में सक्षम होंगे और प्रतिस्पर्धा के इस युग में अपनी उपलब्धियों से इस विश्वविद्यालय ही नहीं, राज्य का नाम भी रौशन करेंगे और साथ ही साथ अन्य विद्यार्थियों के लिए भी प्रेरणा का कार्य करेंगे।
हम जानते हैं कि विद्या को किसी के द्वारा आपसे चुराया नहीं जा सकता और न ही कोई आपसे छीन सकता। जिसके पास विद्या व ज्ञान है, वह कठिन से कठिन परिस्थियों में भी नदी की भाँति अपना मार्ग खुद ढूँढ लेता है।
गीता में “‘सा विद्या या विमुक्तये’ ” का वर्णन है जिसका अर्थ “शिक्षा या विद्या वही है, जो हमें बंधनों से मुक्त करे और हमारा हर पहलू पर विस्तार करे।” राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अनुसार, “सच्ची शिक्षा वह है जो बच्चों के आध्यात्मिक, बौद्धिक और शारीरिक पहलुओं को उभारती है और प्रेरित करती है। उनके मुताबिक़ शिक्षा का अर्थ सर्वांगीण विकास था।”
मेरा मानना है कि शिक्षा सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण जरिया है। इसके माध्यम से लोग स्वावलंबी व आत्मनिर्भर बन सकते हैं। मैं मानता हूँ कि हर शिक्षित व्यक्ति को नौकरी नहीं दी जा सकती है, लेकिन शिक्षित व्यक्ति अपने हुनर से न केवल अपने लिए आजीविका के साधन सुनिश्चित कर सकता है, बल्कि जॉब क्रिएटर भी बन सकता है और लोगों को रोजगार दे सकता है।
शिक्षा मनुष्य को नैतिक बनाने की कला है। सीखने की लगन विकसित करें। यदि आप ऐसा करते हैं, तो आप कभी भी प्रगति करने से नहीं रुकेंगे। शिक्षा का उद्देश्य एक खाली दिमाग को खुले दिमाग में बदलना है। ज्ञान वही है जो आपके किरदार में झलकता है। शिक्षा हमारे समाज में फैली कुरीतियों और अंधविश्वास को मिटाने का भी साधन है। यह गलत रास्ते पर जाने से रोकती है। यह हमारे सोचने के दायरे को व्यापक बनाता है।
भारत ऋषि-मुनियों एवं ज्ञानियों की भूमि है और यहाँ की सभ्यता-संस्कृति अत्यंत समृद्ध रही है। हमारे युवाओं को इस विरासत पर गर्व करना चाहिए। इस क्रम में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बहुत ही सार्थक है। शिक्षाविदों को इसकी विशेषताओं की व्यापक चर्चा करना चाहिए ताकि विद्यार्थी इससे लाभान्वित हो और समाज को भी इसका लाभ मिले। छात्रहित में विश्वविद्यालयों के कुलपति को समय-समय पर आपस में मिलकर शिक्षा जगत से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर भी चर्चा करनी चाहिए।
सभी विश्वविद्यालयों द्वारा यू.जी.सी. की गाइडलाइंस का हर हालत में पालन हो, शैक्षणिक सत्र नियमित हो, रिजल्ट का समय पर प्रकाशन हो तथा समय पर विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान की जाय, इसके लिए विश्वविद्यालय हमेशा प्रयत्नशील रहें। विश्वविद्यालय में सुंदर एवं अनुशासित माहौल हो। सर्वत्र ज्ञान-विज्ञान का वातावरण हो, आधारभूत संरचनाएं उपलब्ध हों तथा समय-समय पर विभिन्न सकारात्मक गतिविधियों का आयोजन किया जाता रहे, जिससे विद्यार्थी प्रोत्साहित हो तथा उनका मनोबल बढ़े।
रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था, “हमारी शिक्षा स्वार्थ पर आधारित, परीक्षा पास करने के संकीर्ण मकसद से प्रेरित, यथाशीघ्र नौकरी पाने का जरिया बनकर रह गई है जो एक कठिन और विदेशी भाषा में साझा की जा रही है। इसके कारण हमें नियमों, परिभाषाओं, तथ्यों और विचारों को बचपन से रटने की दिशा में धकेल दिया जाता है। यह न तो हमें वक्त देती है और न ही प्रेरित करती है ताकि हम ठहरकर सोच सकें और सीखे हुए को आत्मसात कर सकें। ”
शिक्षण संस्थान विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम तक ही सीमित न रखें। कक्षाओं में अच्छे परिवेश में लेक्चर होना चाहिए, उस विषय पर स्वस्थ वाद-विवाद होना चाहिए। शिक्षा का अभिप्राय यह न हो कि विद्यार्थियों को नोट्स उपलब्ध करा दिये और विद्यार्थी उसे रट कर सिर्फ अच्छे अंक प्राप्त कर लें। विद्यार्थियों में निहित इनोवेटिव आइडिया एवं रचनात्मक क्षमता को विकसित करने की कोशिश होनी चाहिए।
माँ सरस्वती की साधना सच्चे मन से की जानी चाहिए। ज्ञान के मंदिर का व्यावसायीकरण नहीं होना चाहिए। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्रों की भागीदारी को इस उद्देश्य के साथ स्वीकार किया गया कि अधिक से अधिक लोगों के बीच उच्च शिक्षा सुगम हो, न कि लाभ के लिए। सिर्फ लाभ ही शिक्षण संस्थानों का मकसद नहीं होना चाहिए। शिक्षण संस्थानों को अपने विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा और संस्कृति देने का भी प्रयास करना चाहिए कि भविष्य में वे उन पर गर्व कर सकें।
विश्वविद्यालय का सामाजिक दायित्व है कि आसपास के ग्रामों में जाकर लोगों को शिक्षा का महत्व समझाएँ और उच्च शिक्षा के प्रति जागरूक करें। कोई भी बच्चा अर्थाभाव में उच्च शिक्षा से वंचित न रहे, इस दिशा में विश्वविद्यालय को ध्यान देने की जरूरत है। विश्वविद्यालय में छात्रवृत्ति कार्यक्रम का भी संचालन होना चाहिए, इससे विद्यार्थी न केवल अच्छा करने के लिए प्रेरित होते हैं, बल्कि उनके मनोबल में भी वृद्धि होती है।
शिक्षित व्यक्ति ही किसी भी समाज का पथ-प्रदर्शक होता है। देश, प्रदेश व समाज को दिशा देने की अहम जिम्मेदारी उन पर ही होती है। देश के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में सामाजिक दायित्वों को निभाने के लिए आप विद्यार्थियों को हमेशा तैयार रहना चाहिए। यह देश के प्रति आपकी जिम्मेदारी भी है।
अंत में, एक बार पुनः उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। आप निरंतर परिश्रम करते रहें और अपने लक्ष्य को प्राप्त करें, मेरा आशीर्वाद आप सबके साथ हैं।
हिंदी भाषा के सम्मान में महामहिम राज्यपाल के कथन*
राष्ट्रभाषा हिन्दी के विषय पर अपने विचार रखते हुए राज्यपाल ने कहा आज राष्ट्रभाषा हिन्दी को पुनः सम्मान दिलाने के लिए सभी स्तर से प्रयास करने की आवश्यकता पर बल दिया जाना चाहिए। हिंदी को देश की एकता, अखण्डता व समृद्धशाली भारत के लिए जरूरी बताते हुए बोलचाल के साथ साथ कामकाज की भाषा बनाने की अपील भी की। उन्होंने बताया इसरो, एनटीपीसी जैसे ख्याति प्राप्त संस्थाओं के द्वारा आज भी हिंदी को अपने संस्थान में कामकाज की भाषा के रूप में अपनाया गया है। साथ ही विद्यार्थियों को अपने ज्ञान बढाने के लिए अन्य वैश्विक भाषाओं को भी सीखने, परंतु हिंदी का सम्मान करने व दैनिक जीवन में हिंदी के प्रचार प्रसार, बढ़ावा देने की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित भी किया।
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