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पलामू : मौसम की तरह बदलते रहे विधायक, सांसद और पदाधिकारी पर नहीं बदली अनुमंडल की सूरत

आजादी के 76 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है छतरपुर अनुमंडल...
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पलामू : मौसम की तरह बदलते रहे विधायक, सांसद और पदाधिकारी पर नहीं बदली अनुमंडल की सूरत
आजादी के 76 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है छतरपुर अनुमंडल
बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, नाली-सड़क एवं स्वच्छता की समस्या गंभीर
समय बदला लेकिन अनुमंडल क्षेत्र की तस्वीर नहीं
छतरपुर के जनप्रतिनिध, प्रशासन पदाधिकारी मालामाल एवं जनता कंगाल

युवा शिक्षाविद - पंचम कुमार

छतरपुर (पलामू) : आज 16 सितंबर है, छतरपुर अनुमंडल 29वर्ष का हो जाएगा। स्थापना के इतने वर्षो बाद आज भी अनुमंडल में कई कार्यालय पदाधिकारियों का बाट जोह रहा है। विकास के नाम पर हवा-हवाई दावे जमीन की सच्चाइयों से कोसो दूर है।

छतरपुर अनुमंडल में बदलते रहे अनुमंडल पदाधिकारी लेकिन छतरपुर अनुमंडल बनने के बाद एक बार भी स्थापना दिवस नहीं मना। आज स्थापना दिवस मनता तो यह 29वां स्थापना दिवस कहलाता।

जनप्रतिनिधि बदलते रहे, लेकिन क्षेत्र का विकासशील चेहरा धुंधला पड़ा हुआ है।वहीं क्षेत्र में समस्याओं का अंबार लगा है।

विकास के नाम पर मंचों से जनप्रतिनिधि एवं प्रशासन भले ही कितना ही ढिंढोरा पीट ले लेकिन छतरपुर अनुमंडल के मुख्यालय सहित विभिन्न क्षेत्रों में जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती नजर आ रही है। आजादी के अमृत महोत्सव मनाने के बाद भी छतरपुर अनुमंडल एवं इसके विभिन्न क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं के लिए लोग तरस रहे हैं। शासन-प्रशासन के जिम्मेदारों को इससे कोई सरोकार नहीं है, इससे ग्रामीणों में आक्रोश भी बढ़ रहा है।

पलामू : मौसम की तरह बदलते रहे विधायक, सांसद और पदाधिकारी पर नहीं बदली अनुमंडल की सूरत

21 वीं सदी में तेजी से दौड़ता हुआ आज पुरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। लेकिन दुसरी तरफ देश के कई कोने आज भी विकास से कोसो दुर मूलभूत सुविधाओं के अभाव में विकास की आजादी की राह तक रहे हैं। उन्हीं में से एक है पलामू जिला के छतरपुर अनुमंडल जहां विकास का दुर दुर तक नाम नहीं है। ग्रामीण विकास से दुर बदहाली की आंसु बहा रहे हैं अनुमंडल वासी, जिसे पोछने की जहमत आजतक किसी ने नहीं उठाई। जी हाँ यह हकीकत है। आज भी छतरपुर अनुमंडल में मूलभूत सुविधाएं नदारत हैं।

छतरपुर विधानसभा क्षेत्र में विधायक बदले, सांसद, बदले पदाधिकारी बदले, और सरकार भी बदले, समय भी बदला लेकिन तस्वीर नही, ना ही बदल पाई अनुमंडल क्षेत्र की तकदीर।

पलामू : मौसम की तरह बदलते रहे विधायक, सांसद और पदाधिकारी पर नहीं बदली अनुमंडल की सूरत

अनुमंडल की स्थापना

अनुमंडल भवन के मुख्य गेट पर लगे शिलापट्ट के अनुसार 16 सितंबर 1994 को नव सृजित अनुमंडल भवन का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री बिहार के लालू प्रसाद यादव ने किया था। उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा था कि अनुमंडल से संबंधित सभी कार्यालय जल्द ही खोले जायेंगे। अनुमंडल वासियों का सारा काम अनुमंडल में ही होगा लेकिन वक्त का पहिया 29वें वर्ष में घुस गया को और वर्तमान स्थिति यह है कि अनुमंडल का स्थिति ज्यो का त्यों रह गया।

जनप्रतिनिधि बदलते रहे, लेकिन क्षेत्र का विकासशील चेहरा धुंधला पड़ा हुआ है।वहीं क्षेत्र में समस्याओं का अंबार लगा है। छतरपुर के मुख्य शहर पर दोनों तरफ कचड़ा का अंबार लगा हुआ है।

नगर पंचायत छतरपुर (2018)

वर्ष 2018 में छतरपुर के मुख्य शहर को नगर पंचायत प्रतिनिधि एवं प्रसाशन मिला , लोगों में काफी हर्ष हुआ सोचा अब शायद नगर पंचायत के तीन किलोमीटर का दायरा साफ स्वच्छ एवं सुंदर बनेगा, शहर में बिजली पानी एवं लाइट एवं अन्य सुविधाएं बहाल होगी लेकिन स्थिति ज्यो का त्यों रहा। विकास की बाट जोहते जोहते 5 वर्ष बीत गए इन 5 वर्षो में करोड़ों रुपये विकास के नाम पर खर्च किया गया। लेकिन नगर पंचायत की स्थिति ज्यो का त्यों रह गया।

गर्मी में पेयजल संकट की बड़ी चुनौती

गर्मी के मौसम में छतरपुर वासियों को पानी की किल्लत से जूझना पड़ता है। पानी से वंचित इन हजारो लोगों को टैंकरों के जरिए कहीं - कहीं पानी सप्लाई किया जाता रहा है लेकिन सरकार द्वारा आज तक पानी की किल्लत से निबटने के लिए कोई स्थायी समाधान नहीं निकाला गया। वहीं सोन नदी से पानी पहुंचाने का सरकार अभी भी सपने दिखा रहे हैं। लेकिन हकीकत तो यह है कि यह सपना सपना ही बनकर रह जाएगा। फिर भी मंत्री लोग अपना वादा करना नहीं भूलते हैं। हाल में पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथलेश ठाकुर छतरपुर से गुजरने के दौरान कहा था कि जून माह से पानी मिलना शुरू हो जाएगा। यह बातें भी हवा हवाई हो गया। लोगों का कहना है कि छतरपुर में अवैध खनन एवं पेडों की अंधाधुंध कटाई एवं सरकार की उदासीनता के कारण हम छतरपुर वासी पानी की समस्या से जूझ रहे हैं।

सड़क की समस्या

यदि सड़को की स्थिति की बात करे तो छतरपुर का मुख्य सड़क एन एच 98 पर वर्षा के दिनों में जलजमाव प्रमुख समस्या हैं। इसके साथ ही अनुमंडल के अधिकतर सड़के पानी में डूबी रहती है। वहीं कई ऐसे गांव हैं जहाँ सड़क के अभाव में लोग किचड़नुमा रास्ते पर ही चलकर किसी तरह गुजर बसर कर रहे हैं। वहीं कई ऐसे गाँव हैं जहां चारपहिया वाहन भी नहीं पहुंच सकते हैं। तो जरा विचार कीजिएगा की ऐसी परिस्थिति में वहां के बीमार व्यक्तियों का अस्पताल कैसे पहुंचाते होंगे।

स्वास्थ्य की स्थिती

स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करे तो करोड़ों की लागत से भव्य अनुमंडलीय अस्पताल तो बनाया गया लेकिन मरीजो को अनुमंडल अस्पताल में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जैसी भी सुविधा नसीब नही हो पा रही हैं और किसी भी मरीज को प्राथमिक उपचार के बाद सीधे रेफर कर देने का नियम यहां विधमान है। इतनी बुरी स्थिती है कि अस्पताल में डॉक्टर भी अधिकाधिक समय नदारद ही रहते हैं और बेहतर इलाज के लिए आज भी लोगों को मेदिनीनगर, गढ़वा, औरंगाबाद, जम्होर या रांची जाना पड़ता हैं। अस्पताल में आये रोगियों को डॉक्टर जो दवा लिखते हैं और साफ साफ कहते हैं बाहर के मेडिकल स्टोर में मिल जाएगा। कभी कभी तो सिरिंज और टेटनस की सुई भी बाहर से खरीदना पड़ता हैं। तो आप महसूस कीजिए कि अस्पताल में मुहैया कराई गई सुविधाओं का लाभ मरीज के अलावा कौन ले रहा है। वहीं अस्पताल के मेन गेट पर बना मूत्रालय लोगों को बीमार कर रही है। साथ अस्पताल के अपशिष्ट पदार्थों को अस्पताल में ही जलाया जाता है जिससे उसकी दुर्गंध से पूरा शहर के लोग बीमार हो रहे हैं।

शिक्षा का हाल

शिक्षा की बात करे तो अनुमण्डल में वह भी चौपट नजर आता है। सरकारी विद्यालयों में शिक्षकों से लेकर भवन आदि की कमी आम बात है। सरकारी शिक्षा मध्याह्न भोजन तक ही सीमित रह गई है। ऐसा नहीं है कि सरकार द्वारा सुविधाएं कम दी जा रही है लेकिन सरकारी सुविधाओं को सरकारी शिक्षक डकार जा रहे हैं। जी यह कोई चौकाने वाली बात नहीं है बच्चों के निवाले से लेकर, किताब कॉपी, ड्रेस एवं विकास फंड की राशि की डकारने से बाज नहीं आते । हां यदि सरकारी स्कूलों में पदाधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों के बच्चे को पढ़ाने को अनिवार्य कर दिया जाए तो शायद स्कूलों की हालत एवं शिक्षा में सुधार सम्भव हो सकता है। बात प्राइवेट स्कूल की करे तो अनुमंडल के चारों प्रखंड में निजी स्कूल तो कई है परंतु बच्चो को उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करने के बजाय ये स्कूल मुनाफा कमाने में ज्यादा बल देते है। सबसे बड़ी बात यह है कि विद्यालय जिसे विद्या का मंदिर कहते हैं वहीं आज छतरपुर का आदर्श विद्यालय के मुख्य गेट भी मूत्रालय बना हुआ है। यह बेहद ही शर्मनाक स्थिति है, और विचारणीय भी। ऐसा नहीं है कि इन सबों पर स्थानीय प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों को नजर नहीं है लेकिन सब मौन धारण किए हुए हैं।

बिजली की व्यवस्था

बिजली आदि सुविधाओं के अभाव में आज भी लोग लालटेन युग में जीने को विवश है। बिजली व्यवस्था ऐसी है कि एक गांव में बिजली है तो दूसरा में गायब । हल्की बूंदाबांदी एवं हवा में भी बिजली घंटो गायब हो जाती है। आये दिन बिजली की जर्जर तार व पोल के कारण सैकड़ों पशुओं की जाने जाती रहती है। वहीं कई लोगों की भी जान गवाना पड़ा है। लेकिन बिजली विभाग को क्या उनका तो कोई नुकसान नहीं होता है इसलिए सब उनके मर्जी से चलता है। छतरपुर में सैकड़ों लोगों के घरों पर 11 हजार वाल्ट के तार लटक रहे हैं दुर्घटना कभी हो सकती है लेकिन पदाधिकारी कान में तेल डालकर सोए हुए हैं। शिकायत दर्ज कराने पर भी पदाधिकारी सुनते नहीं हैं। वहीं नगर पंचायत प्रशासन ने करोड़ों रुपये खर्च कर शहर में हजारों स्ट्रीट लाइट लगाया लेकिन वह सिर्फ दिखावे के लिए लगाया गया। इसकी क्वालिटी इतनी घटिया किस्म का लगाया गया कि लगाते ही दूसरे दिन से जलना बन्द हो रहा है।

निबन्धन कार्यालय

अनुमंडल अंतर्गत रजिस्ट्री ऑफिस की स्थापना आज तक नहीं होने के कारण यहा के लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। 29 वर्ष गुजर जाने के बाद भी आज इस क्षेत्र की जनता को अपने जमीन के निबंधन एवं कार्यो हेतु हुसैनाबाद या मेदिनीनगर जाना पड़ता है। जबकि विभागीय यह प्रावधान है कि प्रत्येक अनुमंडल कार्यालय परिसर में निबंधन कार्यालय का रहना अनिवार्य है।

( इधर हाल ही में वर्तमान विधायक पुष्पा देवी के पहल पर निबंधन कार्यालय खोलने की दिशा में सर्वे कार्य आरंभ हुआ है अब देखना है कि छतरपुर अनुमंडल को निबन्धन कार्यालय कब नसीब होता है। )

ट्रेजरी एवं जेल

अनुमंडल स्थापना के 29वर्ष बाद भी अनुमंडल स्तरीय कई सुविधाएं अभी तक नदारद है। अनुमंडल में ट्रेजरी कार्यालय का स्थापना अब तक नहीं हो सकी है। वहीं, जेल की व्यवस्था भी नहीं हुई। जिस कारण अनुमंडल व्यवहार न्यायालय में सभी आपराधिक मुकदमों की सुनवाई नहीं हो पा रही है। कार्यालय के अभाव में ट्रेजरी कार्य के लिए कर्मियों को जिला मुख्यालय जाना पड़ता है।

रंग रोगन को तरस रहा है अनुमंडल की बिल्डिंग

लोग लाखो रुपये की लागत से बना घर को प्रतिवर्ष रंग रोगन साफ सफाई से चमकाते रहते हैं लेकिन करोड़ो रूपये की लागत से बना अनुमंडल भवन 29 वर्षो से रंग रोगन के लिए तरस रहा है। रंग रोगन के अभाव में बिल्डिंग की हालत बिल्कुल जर्जर स्थिति में नजर आता है। ऐसा लगता है जैसे सैकड़ो वर्ष पुराना हो गया अब गिरने वाला है इसलिए ऐसे ही छोड़ दिया है।

अनुमंडल कार्यालय परिसर में शौचालय की सुविधा नहीं

वैसे तो पूरा छतरपुर अनुमंडल ओडीएफ घोषित हो चुका है। लेकिन कार्यालय परिसर में अभी तक शौचालय का निर्माण नहीं होना चिराग तले अंधेरा वाली कहावत को चरितार्थ करता है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जहाँ सैकड़ों लोगों का आना जाना होता है वहाँ एक भी सार्वजनिक शौचालय नहीं है तो अन्य गांव की स्थिति क्या होगी।

नशा करने का केंद्र बना छतरपुर

यह बात सुनकर चौकीय मत क्योंकि छतरपुर के सिर्फ कउवल गांव में 28 अगस्त 2023 को 2.1 करोड़ का अवैध शराब जप्त किया गया। वहीं फ्रूट जूस के नाम पर एक जगह से 28 लाख का अवैध शराब पकड़ा गया। तो आप बताइए इस शहर का और क्या नाम दिया जा सकता है।

सच्चाई तो यह है कि छतरपुर के अधिकांश गांव में अवैध शराब की भट्ठियां धधकती हैं। बड़े पैमाने पर यहां अवैध शराब तैयार कर बेची जाती है। पुलिस और आबकारी भी समय-समय पर यहां कोरम पूरा करने के लिए कार्रवाई भी करती है, लेकिन यह काला धंधा बदस्तूर जारी रहता है। वर्तमान सरकार से अनुरोध है कि यदि आप सचमुच में राज्य को विकसित करना चाहते हैं तो शराब बंदी किया जाए।

कुल मिला कर कह सकते है कि भले अनुमंडल की स्थापना के 29वर्ष हो गये है लेकिन सुविधा के नाम पर गांव जैसा ही माहौल बना हैं। सरकार से आग्रह है उपरोक्त सभी विन्दुओं पर अवश्य ध्यान आकर्षित करें व छतरपुर अनुमंडल को अनुमंडल में होने वाले सभी सुविधाएं उपलब्ध कराने का कष्ट करें।


क्राफ्ट समाचार इस खबर की पुष्टि नहीं करता है ये खबर जनसरोकार के माध्यम से मिली है जिसके चलते इस खबर को प्रकाशित की जा रही है। इस पर क्राफ्ट समाचार की सच्चाई को लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं करता है।


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